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क्यूंकि अब असहिष्णुता खत्म हो गई है

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अवार्ड वापसी करने वालों "मुस्कुराओ" क्युंकि अब "असहिष्णुता" खत्म हो गई है, क्यूंकि अब केरल से लेकर दरभंगा तक राष्ट्रवादीयों की हत्या होने लगी है, क्यूंकि अब चावल चुराने वाले मधु की मौत पर चुप्पी और अखलाक की मौत पर मातम मनने लगा है, क्यूंकि अब पहलु खान की मौत पर डिबेट और  बीजेपी समर्थकों की मौत पर सन्नाटा छाया हुआ है, क्यूंकि अब भगवा पहनने वाले आतंकी और कत्ले-आम मचाने वाले भटके हुए नौजवान कहलाने लगे हैं, क्यूंकि अब काश्मीर से लेकर अररिया तक पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने लगे हैं, क्यूंकि देश विरोधी नारे सुनने के बाद भी राष्ट्रवादीयों की फौज चुप्पी साधने लगे हैं, क्यूंकि अब जेएनयू से लेकर एएमयू तक भारत की बर्बादी का जश्न मनने लगा है, क्यूंकि अब तिरंगा यात्रा निकालने पर गोली और फतवा निकालने पर बोली लगने लगी है, क्यूंकि अब भारत माता की जय बोलने वाले कटने और भारत की बर्बादी के नारे लगाने वाले छूटने लगे हैं, क्यूंकि अब तुम्हारे नाजायज़ बाप एक सीट जीतते ही राष्ट्रवादीयों को हिजड़ा कहने लगे हैं, "नेताओं" तुम भी "मुस्कुराओ" क्

भगत सिंह के नाम पर अस्तित्व बचाने की कोशिश करते विषैले वामपंथी

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लेनिन और पेरियार के पुतले पर लोगों का गुस्सा तो समझ में आता है, लेकिन जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रतिमा को क्षति पहुंचा कर इन विषैले वामपंथीयों ने एक बार फिर से अपने दोगली और ओछी मानसिकता का परिचय दिया है । त्रिपुरा और तमिलनाडु के लोगों द्वारा लेनिन और पेरियर के पुतले को तोड़ने पर बदले की प्रतिज्वाला में श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के प्रतिमा पर कालिख पोतने वाले और भगत सिंह को अपना आदर्श बताने वाले इन पाखंडी वामपंथीयों ने कांग्रेस के साथ मिलकर जो घिनौना खेल खेलना प्रारम्भ किया है, उसकी भारी किमत देश छोड़ कर चुकानी पड़ेगी, और इसकी शुरुआत हो चुकी है । कहने से गुरेज नहीं कि मुम्बई में अमर जवान ज्योति तोड़े जाने से लेकर हमारे अराध्य देवी-देवताओं के मूर्ति तोड़े जाने पर इन वामियों तथा कांग्रेसीयों ने उफ तक नहीं की थी। लेनिन की मूर्ति क्या तूटी लगा कि इनका बाप मर गया है, और लगे हाय-तौबा मचाने। क्या आपने कभी सोचा है, कि इन वामपंथीयों ने भगत सिंह को अपना आदर्श और हिरो दिखाने की कोशिश क्यों कर रहा है ? क्योंकि अब इन विषैले वामपंथीयों को समझ आ गया है, कि जिस लाल सलाम वाले चेहर

अंखियों के गोली से घायल होता एक मज़हब

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बीते दिनों महाशिवरात्रि और भेलेनटाईन डे के धुम-धाम के बीच एक फुल वाले की दुकान पर अचानक मेरी मुलाकात एक खुबसूरत हसीन सी लड़की से हो गई। मैं मंदिर के सजावट के लिए फुल ले रहा था, तभी सुर्ख लाल गुलाब की कलियों से खेलती उस लड़की पर मेरी नजर पड़ गई, अभी तिरछी नजर से उसे देखा ही था कि, उसने अपनी दोनों भौं को बारी-बारी से उपर नीचे करते हुए मुझे छेड़ने की कोशिश करने लगी । अब मैं ठहरा एक अदना सा पकौड़े वाला, अगर इन अंखियों के भंवर जाल में उलझनें की कोशिश करता तो अब तक पकौड़े तलते-तलते ना जाने कितनों अंखियों के समंदर में गोते लगा चुका होता और खुद पकौड़ा बन गया होता। उसकी इस हिमाकत भरी कारस्तानियों को भांप कर, जैसे-तैसे फुल लेकर वहाँ से भागा और भागा-भागा अपने दोस्तों को ये वाक्या सुना डाला। मेरे चार दोस्तों में एक दोस्त साहिल विशेष समुदाय से आता था, आधुनिक परिवेश में पले-बढ़े परंतु कट्टरपंथी विचारों से डरा हुआ, मेरे उस दोस्त ने बड़े सख्त लहजे में अपनी मर्दानगी का परिचय देते हुए हमलोगों को उससे निपटने का हुनर सिखा ही रहा था, कि इतने में वो लड़की फिर हमलोगों के नजर के सामने थी, लेकिन ये वही लड़

केंद्रीय आम बजट 2018-19 (आम बजट या चुनावी बजट)

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भारतीय राजनीति के इतिहास में मोदी सरकार का कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक कार्यकाल माना जाएगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने से लेकर विदेश नीति, रक्षा मसौदे से लेकर आर्थिक सुधार हेतु लिए गए जी एस टी जैसे कड़े फैसले तथा भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला जैसे टेरर फंडिग पर नकेल कसने हेतु नोटबंदी जैसे कड़े कदम उठाने के लिए मोदी सरकार का सराहनीय प्रयास भविष्य में सुदृढ़ भारत के निर्माण का आधार स्तम्भ साबित हो रहा है। इन सब से परे आज हम मोदी सरकार के कार्यकाल का पांचवा और शायद आखिरी केंद्रीय आम बजट 2018-19 पर चर्चा करतें हैं, क्योंकि अगले वर्ष मोदी सरकार अपने पंचवर्षीय कार्यकाल को पुरा कर रही है, तो लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा पर ही आम बजट की रूपरेखा तैयार हो पाएगी। मोदी सरकार के कार्यकाल की तरह ही आगामी एक फरवरी को पेश होने वाला केंद्रीय आम बजट 2018-19 भी कई मायनों में ऐतिहासिक और दिलचस्प होगा। • सरकार द्वारा जी एस टी लागू करने के बाद यह पहला आम बजट होगा। • भारत के 93 सालों के इतिहास में यह दुसरा मौका तथा जी एस टी लागू होने के बाद पहला मौका है जब रेल बजट और आम

कृषि प्रधान देश का कृषि प्रधान बजट 2018-19

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आज लोकसभा में मोदी सरकार का बहुप्रतिक्षित केंद्रीय बजट 2018 पेश किया गया। सियासी गलियारों में इस बजट को तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थें, कि इस बजट से मोदी सरकार 2019 में सम्भावित लोकसभा चुनाव पर साधने की कोशिश करेंगे। कुल मिलाकर सियासी गलियारों से लेकर आम आदमी तक के बीच यह बजट चुनावी और लोक-लुभावन होने का दावा किया जा रहा था, लेकिन इन तमाम कयासों और अफवाहों को धत्ता बताते हुए मोदी सरकार ने अपने "सबका साथ सबका विकास" के मंत्र वाले चिर-परिचित कार्यशैली को कायम रखते हुए ग्रामीण भारत, किसानों और समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को समर्पित बजट पेश कर विपक्षियों में खलबली मचा दी। एक कृषि प्रधान देश, जिसकी लगभग 3/4% अबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हो उसे समाज के मुख्य धारा से जोड़ने के लिए, 70 सालों के इतिहास में आज पहली बार किसी सरकार द्वारा पेश किया गया बजट मुख्य रुप से किसानों और ग्रामीण भारत के विकास के नाम रहा । ज्ञात हो कि मौजूदा सरकार ने कृषि, किसान और ग्रामीण भारत के अलावा कमोबेश हर वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए बजट पेश किया है । [ ] किसानों के लिए कई राहत भरी घो

सहिष्णुता से असहिष्णुता की ओर बढ़ने पर मजबूर करता हमारा समाज

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काश्मीर से लेकर केरल, कैराना, कर्नाटक, बंगाल, असाम तक और भीमा कोरेगांव से लेकर कासगंज तक ये हम हिंदूओं की ही कमजोरी भी है और देन भी है, कि चंद मुट्ठी भर तथाकथित शांतिदूत आज देश के हर कोने में हिंदुओं पर हावी होता जा रहा है। कमजोरी इसिलिए क्योंकि हम हिंदू आज भी अपने उदारवादी प्रवृत्ति से बाहर निकल कर नहीं सोचते, और हमेशा बहुसंख्यक होने का ठप्पा लगवाकर सहिष्णुता और गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल क़ायम करने के लिए आगे आने पर मजबूर हो जाते हैं । और देन इसिलिए क्योंकि हम हिंदू आज भी अपने इतिहास से सबक नहीं सीखा, हमने शुरू से ही संगठित होकर लड़ाई नहीं लड़ी जिसका परिणाम आज हमें कासगंज जैसे घटनाओं का सामना अपने भाईयों की बली चढ़ाकर करना पड़ता है। क्या कारण था ? • मो. गोरी से अकेले पृथ्वीराज चौहान ने ही युद्ध किया बाकी पड़ोसी हिन्दू राजा क्या कर रहे थें ? • अकबर से केवल मेवाड़ के महाराणा प्रताप लोहा ले रहे थे बाकी पूरे भारत के राजा कहाँ थें ? • शिवाजी महाराज अकेले अफजल खां और औरंगजेब से युद्ध लड़ रहे थे बाकी के हिन्दू राजा क्यों दुबके हुए थें ? इतिहास गवाह है जब-जब हिंदू बंटा है तब-तब हिंदू क

गुमशुदा विकास की समीक्षा-यात्रा

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पत्रकारिता जब अपने चरम पर होती है तब ऐसी ही खबरें निकल के सामने आती हैं, और जब किसी राज्य में विकास अपने चरम पर हो, तब मानव श्रृंखलाएं। राज्य के विकास को परिभाषित करती ये तस्वीर आपको बरबस सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि इंसान जब हठधर्मी हो जाता है, जब उस पर इतिहास के सुनहरे पन्नों पर अपना नाम दर्ज करवाने की सनक चढ़ जाए, तो वह कुछ भी कर सकता है । जी हां जिस राज्य में शिक्षकों का बकाया वेतन भुगतान होना समाचार बन जाता है उस राज्य में विकास की स्थिति क्या हो सकती है, इसका आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और कानून व्यवस्था आज फिर से बदहाल है, आज भी लोग दुसरे शहरों में रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हो रहें हैं । विकास-पुरुष और सुशासन बाबु की छवि को ताक पर रखकर समाज सुधारक बनने की ख्वाहिश लिए विकास-समीक्षा यात्रा पर निकले हमारे मुख्यमंत्री जी किस विकास की समीक्षा में वक्त जाया कर रहे हैं ये हम जैसे टीईटी पास बेरोजगार युवाओं के समझ से परे है, लेकिन इतना समझ में आ रहा है कि साहब जिस विकास की नाव पर सवार होकर सत्ताधीश हुए हैं उस नाव में अपने सनक से छेद कर रहे हैं ।